द पब्लिकेट का संपादकीय। शहर की पुलिस जहां बड़े से बड़े कुख्यात अपराधियों को दबोचने और उनकी धरपकड़ में लगी रहती है, तो वहीं पुलिस भावना हत्याकांड के आरोपी आशु, मुकुल और स्वस्ति को पकड़ने में भी अभी तक नाकाबियाब है। ये वही इंदौर पुलिस है जिसने चाकूबाजी, चोरी, लूट, हत्या, बलात्कार जैसे बड़े अपराधों में लिप्त आरोपियों को चंद घंटों में पकड़ कर हवालात भेजा है। जबकि अब तो इंदौर पुलिस की कमान कमिश्नर संतोष सिंह के हाथ में है जो बड़े अपराधों पर जीरो टॉलरेंस में कार्य करते है। इनकी कार्यप्रणाली से शहर में नए साल से ही संतोष रहा। हां, अपराध भी हुए लेकिन ऐसा कतई नहीं हुआ कि इन्होंने सख्ती नहीं दिखाई। पुलिस को सख़्त आदेश देकर आरोपियों पर कड़ी कार्रवाई भी करवाई। जुलूस भी निकलवाए ताकि छूट-पुट से लेकर बड़े अपराधी भी वारदात करने पहले हजार बार सोचे।
इंदौर में ग्वालियर की रहने वाली भावना सिंह की हत्या को तीन दिन हो चुके है, लेकिन अभी तक आरोपी गिरफ्त से दूर है। आरोपी आशु यादव, मुकुल यादव, स्वस्ति राय को पकड़ने के लिए लसूड़िया और विजय नगर की खुफिया सेल पुलिस लगी है। टीम दतिया, ग्वालियर, सतना जाकर तलाश कर रही है लेकिन कोई लीड नहीं मिली। पुलिस को आरोपियों की लास्ट लोकेशन भोपाल में मिली है। तो क्या हम ये कह सकते है कि पुलिस ने उनको संभवतः भोपाल में दबोच लिया हो और जल्द ही पुलिस हत्याकांड का खुलासा कर दे…!। या फिर आरोपी सांठ-गांठ कर थोड़े दिन बाद मामला ठंडा होने पर खुद सरेंडर कर दें।
द पब्लिकेट की टीम ने जब मृतिका के मुंहबोले भाई पंकज ठाकुर से चर्चा की तो उनका कहना था कि एसी वारदात अगर ग्वालियर में होती तो तत्काल पुलिस तत्परता से आरोपियों को पकड़ती, लेकिन इंदौर पुलिस ढील-पुल कर रही है। इंदौर पुलिस के पास वर्तमान में ऐसा तंत्र है कि वह चाहे तो चंद घंटों में आरोपियों को दबोच सकती है। पर ऐसा क्या कारण है कि अभी तक वह खालीहाथ है। क्या पुलिस इसलिए मामले को ठंडे बस्ते में डाल रही क्योंकि भावना सिंह अनाथ है ? उसके माता-पिता नहीं है ? या फिर इसलिए कि आरोपियों का इतना रसूख है कि पुलिस कहीं न कहीं प्रेशर में है ?
आपको बता दें, आरोपी आशु यादव और उसके साथियों का ऑनलाइन सट्टे का कामकाज है। सट्टे के दम पर उसने पॉश इलाके में 35 हजार ला फ्लैट ले रखा था, लेकिन खुद इतना शातिर है कि फ्लैट भी खुद के नाम पर रेंट पर नहीं लिया। दोस्तों के नाम पर लिया। यां यूं कहें कि अपने सट्टे का कारोबार आशु इसी फ्लैट में करता था। ये बात इसलिए सोचने में आ रही है क्योंकि फ्लैट में रहने वाले चारों युवक नौकरी करते है। फ्लैट जिस पीयूष अवस्थी के नाम पर लिया गया था वह तो घटना के दिन हैदराबाद में था, तो वहां पर आशु, मुकुल, स्वस्ति और उसके शराबियों दोस्तों की एंट्री कैसे हुई ?