द पब्लिकेट, इंदौर। हाल ही में मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय की इंदौर बेंच के न्यायमूर्ति अनिल वर्मा ने देश में समान नागरिक संहिता (यूसीसी) की तत्काल आवश्यकता पर जोर देते हुए महत्वपूर्ण टिप्पणियां कीं। यह टिप्पणी उन्होंने एक मामले की सुनवाई के दौरान की, जिसमें तीन तलाक और दहेज उत्पीड़न से संबंधित आरोप शामिल थे।

न्यायमूर्ति वर्मा ने कहा कि तीन तलाक को असंवैधानिक और समाज के लिए हानिकारक मानने में कानून निर्माताओं को वर्षों लग गए। अब हमें समान नागरिक संहिता की आवश्यकता को महसूस करना चाहिए। उन्होंने बताया कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 44 में पहले से ही समान नागरिक संहिता का प्रावधान है, जिसे केवल कागजों पर नहीं बल्कि वास्तविकता में लागू करने की जरूरत है।

यह मामला मुंबई की अलीया और फराद सैयद का था, जिन पर सलमा, फैजान की पत्नी, द्वारा दर्ज मामलों में कई कानूनी प्रावधानों के तहत आरोप लगाए गए थे। सलमा ने आरोप लगाया कि उनके पति ने तीन बार ‘तलाक’ कहकर उन्हें तलाक दे दिया और फिर उन्होंने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि कथित अपराध मुंबई में हुए थे, इसलिए यह मामला मध्य प्रदेश के राजपुर पुलिस स्टेशन के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता।

न्यायमूर्ति वर्मा ने स्पष्ट किया कि दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 177 के तहत अपराधों की सुनवाई उनके स्थानीय क्षेत्र के बाहर की अदालतों में भी हो सकती है। उन्होंने कहा कि यदि एक क्षेत्र में अपराध किया गया हो और उसके परिणाम दूसरे क्षेत्र में महसूस किए गए हों, तो सीआरपीसी की धारा 179 के अनुसार दूसरे क्षेत्र की अदालतें भी मामले की सुनवाई के लिए सक्षम हैं। न्यायालय ने यह भी कहा कि मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) अधिनियम, 2019 के प्रावधान केवल मुस्लिम पतियों पर लागू होते हैं। इसलिए, सास और ननद के खिलाफ इस अधिनियम की धारा 4 के तहत दर्ज अपराध को रद्द कर दिया गया। हालांकि, दहेज और शारीरिक उत्पीड़न के आरोपों पर सुनवाई जारी रहेगी।

समान नागरिक संहिता की आवश्यकता

न्यायाधीश वर्मा ने तर्क दिया कि एक अच्छी तरह से ड्राफ्ट की गई समान नागरिक संहिता समाज में व्याप्त अंधविश्वास और बुरी प्रथाओं पर नियंत्रण स्थापित कर सकती है और राष्ट्र की अखंडता को मजबूत कर सकती है। उन्होंने कहा कि तीन तलाक की प्रथा को पहले ही सर्वोच्च न्यायालय द्वारा शायरा बानो बनाम भारत संघ मामले में अवैध घोषित किया जा चुका है, लेकिन इसके खिलाफ कानून 2019 में पारित किया गया था

समाज सुधार की दिशा में कदम

न्यायमूर्ति वर्मा ने कहा, “यह निश्चित रूप से समानता और सामाजिक सुधार की दिशा में एक बड़ा कदम है। हमें अब अपने देश में समान नागरिक संहिता की आवश्यकता को समझना चाहिए।”

इस मामले में याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व अधिवक्ता सुधांशु व्यास ने किया, जबकि राज्य का प्रतिनिधित्व अधिवक्ता अमय बजाज ने किया।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Copyright © 2024 DJ Digital Venture