द पब्लिकेट, दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं के गुजारा भत्ता को लेकर बड़ा फैसला लिया है। सुप्रीम कोर्ट का कहना है की गुजारा भत्ता मिलने का अधिकार मुस्लिम महिलाओं को भी मिलना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा की महिलाओं को यह अधिकार दिया गया है की वह तलाक के बाद अपने पति से गुजारा भत्ता मांग सकती हैं, चाहे वह महिला मुस्लिम है, हिन्दू है या फिर किसी अन्य धर्म की है।
मामला तेलंगाना का है, जहां फैमिली कोर्ट ने तलाकशुदा मुस्लिम महिला को गुजारा भत्ता देने का फ़ैसला सुनाया था। फैमिली कोर्ट के फैसले को हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट मे चैलेंज किया गया था।
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच ने CrPC की धारा 125 का हवाला देते कहा की देश में धर्मनिरपेक्ष कानून चलेंगा। उन्होंने कहा की भरण-पोषण के लिए मुस्लिम महिलाये कानूनी अधिकारो का इस्तेमाल कर सकती हैं। सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा की गुजारा भत्ता हर शादीशुदा महिला का अधिकार है।
धर्मनिरपेक्ष है धारा 125
1985 के शाह बनो केस का निर्णय लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने साफ-साफ कहा था की मुस्लिम महिलाये भी धारा 125 का सहारा ले कर गुजारा भत्ता के लिए याचिका दायर कर सकती है। धारा 125 का प्रावधान पूरी तरह से धर्मनिरपेक्ष है। CrPC की धारा 125 के तहत हर धर्म की महिलाओ को गुजारा भत्ता के लिए कोर्ट मे याचिका दायर करने का अधिकार दिया गया है।