- प्रेस्टीज यूनिवर्सिटी से मेंटल हैरेस हो रहे स्टूडेंट्स की नहीं हो रही सुनवाई
- शिकवा शिकायत करने के बावजूद स्टूडेंट्स हो रहे परेशान
- बदलाव के नाम पर डायरेक्टर दे रहा स्टूडेंट्स को सिर्फ आश्वासन
द पब्लिकेट की एक्सक्लूसिव खबर, इंदौर। परिजन अपने बच्चों की बहतर पढ़ाई के लिए क्या कुछ नहीं करते। घर से दूर, महंगी फीस देने के बाद भी अगर उनके बच्चे के साथ यूनिवर्सिटी में असत्य बर्ताव होता है तो इसका जिम्मेदार कॉलेज प्रबंधक है। यूनिवर्सिटी में फेल की धमकी देकर स्टूडेंट्स की आवाज दबाना, शिकायत करने पर उसके साथ बुरा बर्ताव करवा, अगर कोई स्टूडेंट खुलकर सामने आ रहा हो तो उसे फेल करना खुन्नस निकालने जैसा है। कॉलेज प्रबंधक को ऐसे मामलों में स्टूडेंट्स की शिकायतों पर बदलाव करना चाहिए। इससे स्टूडेंट में कॉन्फिडेंस आता है और वह संस्थान का सम्मान करता है। द पब्लिकेट को महीनेभर से प्रेस्टीज यूनिवर्सिटी में स्टूडेंट्स के साथ हो रही प्रताड़ना की शिकायतें मिल रही थी। इसपर जब द पब्लिकेट ने इन्वेस्टीगेशन की तो कई राज सामने आए। द पब्लिकेट के पास कई ऐसी भी रिकॉर्डिंग सामने आई है जिनमें स्टूडेंट यूनिवर्सिटी से प्रताड़ित होकर आत्महत्या तक करने का सोच रह है।
असल में, प्रेस्टीज यूनिवर्सिटी के पीजीडीएम कोर्स में हर सेमेस्टर और हर बैच के 10 प्रतिशत स्टूडेंट्स को डी ग्रेड दिया जा रहा है, जिससे स्टूडेंट्स को तकलीफ का सामना करना पड़ रहा है। हर सेमेस्टर में स्टूडेंट को डी ग्रेड देना, उसके भविष्य के साथ खिलवाड़ करने जैसा है। द पब्लिकेट की टीम के पास प्रेस्टीज यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट्स की शिकायतें आई है जिसमें उन्होंने कोर्स के दौरान हो रही तकनीकी समस्याओं की शिकायतें की है। स्टूडेंट्स का कहना है कि हमें हर सेमेस्टर किसी न किसी सब्जेक्ट में फेल किया जा रहा है। यह डी ग्रेड तब मिलता है जब स्टूडेंट को किसी एक सब्जेक्ट में सबसे कम अंक मिले हो। यूनिवर्सिटी की इस प्रक्रिया से स्टूडेंट को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। लगातार ऐसा होने पर कई स्टूडेंट्स ने डायरेक्टर सुधीर प्रधान से चर्चा करने का प्रयास किया तो वह चेयरपर्सन हर्षिका गब्बड़ से बात करने का कहते है। हर्षिता से जब स्टूडेंट्स बात करते है तो वह डायरेक्टर से पास भेज देती है। हर बार उनको आश्वासन देकर मामला शांत करवा देते है। खास बात यह कि स्टूडेंट को झांसे में लेकर यूनिवर्सिटी ने एडमिशन तो करवा लिया लेकिन उनको एडमिशन के समय पर डी ग्रेड वाली पालिसी नहीं बताई गई। कई ऐसे सब्जेक्ट भी है जो यूनिवर्सिटी ने एडमिशन और न की इंडक्शन से समय पर बताए।
प्रेस्टीज का पीजीडीएम कोर्स पहले विजय नगर इलाके के बर्फानी धाम स्थित बिल्डिंग में होता था। लेकिन करीब 6 महीने पहले से उन्होंने स्टूडेंट्स को शिफ्ट कर सांवेर रोड स्थित प्रेस्टीज यूनिवर्सिटी में बुलाना शुरू कर दिया। यहीं पर अब पीडीजीएम कोर्स कर रहे स्टूडेंट्स को पढ़ाया जाता है।
यूनिवर्सिटी के डायरेक्टर पर निर्भर ग्रेड सिस्टम
डी ग्रेड का मतलब स्टूडेंट को फेल करने जैसा है। और यह रूल अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद ( AICTE ) के तहत है। यह कॉलेज के डायरेक्टर के ऊपर निर्भर करता है की वह अपने स्टूडेंट को फेल करे या पास करे। यूनिवर्सिटी में कई फैकल्टीज ऐसी भी है जिन्होंने स्टूडेंट्स के भविष्य की चिंता कर उन्हें ग्रेस मार्क्स देकर पास किया है। लेकिन डायरेक्टर प्रधान स्टूडेंट को फेल करने में विश्वास रखते है। अगर कोई स्टूडेंट शिकायत लेकर जाता है तो उसे सिर्फ आश्वासन ही मिलता है। इससे वह मानसिक रूप से प्रताड़ित हो रहा है।
आईआईएम की तर्ज पर सिर्फ रिजल्ट, बाकी वादों पर कोई नतीजा नहीं
स्टूडेंट्स का कहना है की पीजीडीएम ऑफिस के हिसाब से यह आईआईएम की पॉलिसीज को फ़ॉलो कर उसे संस्थान में संचालित कर रहे है, लेकिन आईआईएम के हिसाब से पढ़ा रहे हो तो आप उस हिसाब से वैसी फैकल्टीज को भी रखें। आईआईएम के हिसाब से कॉलेज में 99.9 पर्सेंटाइल के आधार पर एडमिशन मिलता है। इसके बाद भी उनको इंटरव्यू देकर एडमिशन मिलता है।
ऐसा ही पीजीडीएम कोर्स में एडमिशन लेने के लिए होता है। स्टूडेंट को 50 पेसेंटाइल होने पर एडमिशन मिलता है, लेकिन उसे उस हिसाब से फैकल्टीज नहीं मिलती है। इसके कारण स्टूडेंट की पढ़ाई में समस्या होती है।
जैसा स्टूडेंट में द पब्लिकेट को बताया
एडमिशन के समय यह बोला जाता है कि सीमेट (CMAT) में न्यूनतम 50 पर्सेंटाइल होना आवश्यक है, तभी स्टूडेंट एलिजिबल होगा। लेकिन यूनिवर्सिटी में बिना CMAT दिए भी एडमिशन मिल जाता है। इंडक्शन के समय जो विषय नहीं बताए जाते, उन्हें बाद में पाठ्यक्रम का हिस्सा बना दिया जाता है, जो स्टूडेंट्स के लिए अनुचित है। खासकर तब जब वह विषय फैकल्टी ने पढ़ाए ही नहीं, न असाइनमेंट लिए, और न ही कोई परीक्षा आयोजित की। इसके अलावा, नेशनल प्रोग्राम ऑन टेक्नोलॉजी इनहैंस्ड लर्निंग (NPTEL) के कोर्सेस को पाठ्यक्रम में जोड़कर उन छात्रों को डी ग्रेड देना, जिन्होंने रजिस्ट्रेशन नहीं किया या सर्टिफिकेट नहीं लिया, समझ से परे है। NPTEL की नीति के अनुसार, जिन्होंने सर्टिफिकेट नहीं लिया, उन्हें फेल नहीं माना जाता, तो फिर कॉलेज ने उनका एग्जाम लेना और उन्हें D ग्रेड देना केवल एक औपचारिकता लगता है। अगर वह विषय आधिकारिक रूप से पाठ्यक्रम का हिस्सा था ही नहीं, तो उनकी परीक्षा लेना और ग्रेडिंग करना बिल्कुल गलत है। यह पूरी प्रक्रिया छात्रों के लिए भ्रम और अनुचित प्रथाओं को दिखाती है, जिसमें कॉलेज की नीतियां और उनका कार्यान्वयन काफी अस्पष्ट लगता है।
6 महीने की पढ़ाई करवाई थी 6 दिन में खत्म
स्टूडेंट्स बताते है पायथन कोर्स में जब दूसरे सेमेस्टर में हमको समझने में दिक्कत आई थी तब हमनें डायरेक्टर से सब्जेक्ट हटाने या फिर क्लास ऑफलाइन लगवाने की शिकायत की थी। इसपर उन्होंने ऑनलाइन क्लास चलने दी और आखिर में स्टूडेंट के दबाव के कारण 6 दिन के लिए क्लास लगवाई, जिसमें फैकल्टी ने 6 घंटे पढ़ाया जो स्टूडेंट्स के सिर से ऊपर गया। स्टूडेंट्स को सब्जेक्ट समझने में बहुत समस्या आई जिसके चलते स्टूडेंट्स फेल हुए।