द पब्लिकेट। भारत वर्ष में हर कोई बप्पा के आगमन के लिए बहुत उत्साहित रहता है। गणेश चतुर्थी के दिन बप्पा को स्थापित किया जाता है और 10 दिनों तक उनकी खूब सेवा की जाती है, उनके मनपसन्द भोग लगाए जाते है । और ग्यारहवें दिन अनंत चतुर्दशी को बप्पा को विसर्जित किया जाता है। लेकिन इसके पीछे की पौराणिक कथा या कारण क्या है?
आइए जानें…

दरअसल, जब लोक कल्याण के लिए महर्षि वेदव्यास ने महाभारत की रचना प्रारम्भ की तो भगवान ने उन्हें प्रथम पूज्य श्रीगणेश की सहायता लेने के लिए कहा। वे स्वयं भी जानते थे कि श्रीगणेश ज्ञान एवं बुद्धि के दे‌वता है। मान्यता है उन्होंने महाभारत लिखने का कार्य चतुर्थी के दिन शुरू किया( जिस दिन बप्पा को स्थापित किया जाता है)।और यह भी तय हुआ कि वेदव्यास जी 10 दिनों तक लगातार महाभारत की कथा बोलेंगे और श्रीगणेश उस कथा को लिखेंगे। तत्पश्चात् वेदव्यास जी ने बोलना शुरू किया और गणेश जी ने उसे लिखना शुरु किया । कहा जाता है कि भगवान की लीला और गीता का रसपान करते हुए गजानन इतने लीन हो गए कि उन्हें अष्टसात्विक भाव का उद्वेग हो गया, जिससे उनका पूरा शरीर गर्म हो गया।

गणेश जी के इसी तपन को शांत करने के लिए वेदव्यास जी ने उनके शरीर पर शीतल मिटटी का लेप किया। इसके बाद उन्होंने गणेश जी को सरोवर में स्नान करवाया, जिससे उनके शरीर का ताप खत्म हुआ। और तभी से गणेश विसर्जन का प्रथा प्रारम्भ हुई।

गणेश जी के विसर्जन से जुड़े अन्य कारण..

प्रकृति और पंचतत्वों का महत्व : भगवान गणेश की मूर्ति मिट्टी से बनाई जाती है, जो प्रकृति के पंचतत्वों (जल, वायु, अग्नि, पृथ्वी, और आकाश) का प्रतीक होती है। विसर्जन के समय मूर्ति को जल में प्रवाहित किया जाता है, जिससे यह पंचतत्वों में विलीन हो जाती है। यह प्रतीकात्मक है कि जीवन भी इन्हीं तत्वों से बना है और अंत में इन्हीं में विलीन हो जाता है।

● समर्पण और अहंकार का त्याग: विसर्जन का एक अन्य आध्यात्मिक महत्व यह भी है कि हम अपने अहंकार और स्वार्थ का त्याग करें, जैसे मूर्ति जल में विलीन हो जाती है, वैसे ही हमें भी अपने भीतर के दोषों को त्याग कर, स्वयं को शुद्ध करना चाहिए।

इस प्रकार, गणेश विसर्जन न केवल धार्मिक आस्था का हिस्सा है, बल्कि यह जीवन के महत्वपूर्ण सिद्धांतों को भी दर्शाता है।

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