गणेशजी से जुड़ी पोरणिक कथाएं

द पब्लिकेट। ● तो इसीलिए भगवान गणेश को प्रिय है मोदक..

गणेश को मोदक का भोग लगाने के पीछे की कथा बहुत प्रसिद्ध है। ऐसा कहा जाता है कि एक बार देवी पार्वती ने भगवान गणेश और उनके भाई कार्तिकेय के बीच एक प्रतियोगिता रखी। प्रतियोगिता यह थी कि जो भी सबसे पहले पूरी पृथ्वी की परिक्रमा करेगा, उसे सबसे बड़ा पुरस्कार मिलेगा।

कार्तिकेय ने अपनी सवारी मोर पर सवार होकर पृथ्वी की परिक्रमा करना शुरू कर दिया, जबकि गणेश जी ने अपने माता-पिता, शिव और पार्वती, के चारों ओर तीन बार चक्कर लगाकर उन्हें नमस्कार किया। उन्होंने कहा कि उनके माता-पिता ही उनके लिए पूरी दुनिया हैं, और इस प्रकार उन्होंने सबसे पहले पृथ्वी की परिक्रमा पूरी की।

गणेश जी की इस बुद्धिमानी और भक्ति से प्रसन्न होकर माता पार्वती ने उन्हें मोदक का प्रसाद दिया। इस प्रकार, मोदक गणेश जी का प्रिय भोग बन गया और आज भी गणेश पूजा में विशेष रूप से मोदक का भोग लगाया जाता है। मोदक को मिठास,आनंद और बुद्धिमत्ता का प्रतीक माना जाता है।
● क्यों चढ़ाई जाती है भगवान गणेश को दूर्वा?
भगवान गणेश को दूर्वा (दूब घास) चढ़ाने की परंपरा के पीछे एक पौराणिक कथा है जो उनकी अद्वितीयता और अनुग्रह को दर्शाती है।

कथा के अनुसार, एक बार अनलासुर नाम का एक दैत्य धरती पर उत्पात मचा रहा था। वह सभी देवताओं और ऋषि-मुनियों को परेशान कर रहा था। कोई भी देवता उसे पराजित नहीं कर पा रहा था। तब सभी देवता भगवान गणेश के पास मदद के लिए पहुंचे।

भगवान गणेश ने अनलासुर का सामना किया और उसे निगल लिया। हालांकि, अनलासुर के शरीर में प्रवेश करने के बाद भगवान गणेश के पेट में अत्यधिक गर्मी और दर्द होने लगा। इस असहनीय पीड़ा से छुटकारा पाने के लिए विभिन्न उपाय किए गए, लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ। तब महर्षि कश्यप ने भगवान गणेश को 21 दूर्वा (दूब) चढ़ाने का सुझाव दिया।

जैसे ही दूर्वा को भगवान गणेश को अर्पित किया गया, उनकी पेट की गर्मी और पीड़ा तुरंत शांत हो गई। दूर्वा की ठंडी तासीर ने उन्हें राहत दी। इसके बाद से दूर्वा भगवान गणेश के प्रिय हो गई और गणेश पूजा में इसे चढ़ाने की परंपरा बन गई। दूर्वा भगवान गणेश के प्रति भक्तों की श्रद्धा और उनकी कृपा प्राप्ति का प्रतीक मानी जाती है।

● क्यों नहीं देखते गणेश चतुर्थी का चंद्रमा?
गणेश चतुर्थी के दिन चंद्रमा को देखने से बचने की परंपरा के पीछे एक पौराणिक कथा है। यह कथा श्रीमद् भागवत और गणेश पुराण में वर्णित है।

कथा के अनुसार, एक बार गणेश चतुर्थी के दिन भगवान गणेश के पास बहुत सारे मोदक और मिठाइयाँ थीं, जिन्हें उन्होंने खाया। खाने के बाद, भगवान गणेश चूहे (जो उनका वाहन है) पर सवार होकर यात्रा कर रहे थे। अचानक चूहा एक साँप को देखकर डर गया और भगवान गणेश नीचे गिर पड़े। गिरने के कारण उनका पेट फट गया और सभी मिठाइयाँ बाहर आ गईं।

भगवान गणेश ने अपने पेट को फिर से ठीक किया और साँप को बेल्ट की तरह बांधकर अपने पेट के चारों ओर लपेट लिया। लेकिन उसी समय, चंद्रमा यह दृश्य देख रहा था और गणेश जी का मजाक उड़ाने लगा। चंद्रमा की हँसी से भगवान गणेश क्रोधित हो गए और उन्होंने चंद्रमा को शाप दे दिया कि जो भी चंद्रमा को इस दिन देखेगा, उसे झूठा आरोप और कलंक का सामना करना पड़ेगा।

इस शाप के प्रभाव को कम करने के लिए चंद्रमा ने भगवान गणेश से क्षमा याचना की। तब भगवान गणेश ने चंद्रमा का शाप कुछ हद तक कम कर दिया, लेकिन यह कहा कि जो भी व्यक्ति भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी के दिन चंद्रमा को देखेगा, उसे किसी न किसी प्रकार के झूठे आरोप का सामना करना पड़ेगा।

इसलिए, गणेश चतुर्थी के दिन चंद्रमा को देखने से बचने की परंपरा है ताकि किसी भी प्रकार की मुसीबत या कलंक से बचा जा सके। और यही कारण है कि गणेश जी को सफेद वस्तुएं नहीं चढ़ाई जाती क्योंकि उनका सम्बन्ध चंद्रमा से है।

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