द पब्लिकेट। सुप्रीम कोर्ट ने तलाकशुदा महिलाओं को मिलने वाले गुजारा भत्ता पर बड़ा निर्णय लिया है। सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि महिला अपराध प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 125 (अब भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 144) के तहत महिलाएं अपने पति से भरण-पोषण की हकदार हैं। इस फैसले के अनुसार, यह अधिकार मुस्लिम महिलाओं पर भी लागू होगा।
जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच ने तेलंगाना के मुस्लिम युवक मोहम्मद अब्दुल समद की याचिका को खारिज करते हुए स्पष्ट किया कि मुस्लिम महिलाओं को भी अन्य धर्मों की महिलाओं की तरह गुजारा भत्ता पाने का समान अधिकार है। कोर्ट ने यह भी कहा कि भरण-पोषण का अधिकार किसी धर्म विशेष का नहीं है, बल्कि यह सभी विवाहित महिलाओं का मौलिक अधिकार है।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में जोर देकर कहा कि महिलाओं का भरण-पोषण का अधिकार दान का मामला नहीं है, बल्कि यह उनकी वित्तीय सुरक्षा और लैंगिक समानता का सिद्धांत है। जस्टिस नागरत्ना ने भारतीय पुरुषों से अपील की कि वे अपनी पत्नी के त्याग को पहचानें और उन्हें बैंक में जॉइंट अकाउंट खोलने और एटीएम तक पहुंच बढ़ाने जैसे कदम उठाएं। उन्होंने कहा कि कुछ पति इस बात से अनजान हैं कि उनकी गृहणी पत्नी भावनात्मक और अन्य तरीकों से उन पर निर्भर है, इसलिए उनके लिए आवश्यक है कि वे अपनी पत्नी को नियमित रूप से वित्तीय सहायता उपलब्ध कराएं।
अब्दुल ने अपने मामले में कहा था कि उसने मुस्लिम कानून के तहत तलाक लिया है और उन पर गुजारा भत्ता का कानून लागू नहीं होता। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मुस्लिम महिला (विवाह के अधिकार का संरक्षण) एक्ट 2019 के तहत तीन तलाक के मामले में भी महिला को गुजारा भत्ता पाने का अधिकार है। कोर्ट ने इस मामले में कहा कि यदि कानूनी रूप से अवैध तीन तलाक भी दिया गया है तो भी महिला गुजारा भत्ता पाने की हकदार होगी।

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