द पब्लिकेट से भव्य द्विवेदी की एक्सक्लूसिव रिपोर्ट, मध्य प्रदेश। पालक अपने बच्चे की अच्छी और बेहतर शिक्षा के लिए आंख बंद कर रुपए खर्च कर देते हैं। जेब में पैसा हो या न हो पर अपने बच्चे के लिए माता-पिता बिना सोचे समझे पानी की तरह पैसे बहाते हैं, लेकिन इनका फायदा कोई और नहीं बल्कि वह स्कूल और पब्लिशर कमाता है जिनसे आप बुक्स खरीदते हो। द पब्लिकेट एक जागरूक मीडिया संस्थान होने के नाते अपने पाठकों को एक ऐसी खबर पढ़ा रहा है जो पालकों और शासन-प्रशासन को जानना जरूरी है। यह ऐसी खबर है जिस पर हर वर्ष आदेश और निर्देश तो आते है, लेकिन स्कूल और बुक पब्लिशर्स की मोनोपॉली की लुका-छुपी के आगे सब नतमन्तक है।

मध्य प्रदेश के सभी जिलों के कलेक्टर हर वर्ष आदेश जारी करते हैं कि प्राइवेट स्कूल ( अशासकीय शैक्षणिक संस्थान ) अपनी बुक्स की लिस्ट समय पर डीईओ (डिस्ट्रिक्ट एजुकेशन ऑफिसर) और अपनी वेबसाइट पर अपलोड करें। ताकि पालकों को अपने बच्चों की कॉपी-किताबों के लिए परेशान न होना पड़े। लेकिन इसके बाद भी हर वर्ष स्कूल अपनी मनमानी करते हैं। जिला तो क्या प्रदेश के कई प्राइवेट स्कूल इस आदेश को नहीं मानते। कारण है कि अगर वे समय पर बुक्स की लिस्ट अपलोड कर बोर्ड पर लगा देंगे तो उन्हें प्रॉफिट नहीं मिल सकेगा। हाल ही में भोपाल और जबलपुर कलेक्टर ने अशासकीय शैक्षणिक संस्थानों के लिए आदेश जारी किए हैं जिसमें साफ लिखा है कि 15 जनवरी के पहले बुक्स की लिस्ट डीईओ ऑफिस में जमा करें। लेकिन यह आदेश अब तक प्रदेश के अन्य जिलों में नहीं आया है। जबकि यह प्रदेश का बहुत महत्वपूर्ण विषय होना चाहिए। सरकार के सामने पालकों को हर वर्ष शिक्षा के नाम पर भरपूर चुना लगाया जा रहा हैं, लेकिन इस पर कोई बात नहीं कर रहा। गौर फरमाने की बात तो यह भी की इस महत्वपूर्ण विषय पर सिर्फ भोपाल और जबलपुर में आदेश जारी हुए है। इंदौर, उज्जैन, नीमच, मंडलेश्वर, महेश्वर, धार, थानला, झाबुआ, रतलाम, धामनोद और अन्य जिलों में कलेक्टर कब आदेश जारी करेंगे? 

असल में, यह एक बहुत बड़ा खेल है जो शासन-प्रशासन और पालकों से छुपा हुआ है। होता यह है कि अगर स्कूल समय पर बुक्स की लिस्टिंग कर देंगे तो पालकों को बच्चे की बुक्स लेने के लिए पर्याप्त समय रहेगा। वे शहर की किसी भी बुक्स दुकान पर जाकर बुक्स खरीद सकेंगे। लेकिन इसमें खेल यह होता है कि अगर पालकों को आसानी से हर दुकान पर बुक्स मिल जाए तो उन बुक्स सेलर्स और पब्लिशर्स का धंधा मंदा हो जाता है जो इस धंधे में माफिया बनकर बैठे हैं। इसके लिए पहले से ही पब्लिशर्स और स्कूल प्रबंधक आपस में मोनोपॉली कर लेते हैं। इस क्षेत्र के विश्वसनीय सूत्र बताते हैं कि स्कूल का नया सत्र शुरू होने से पहले ही बड़े पब्लिशर्स स्कूल में जाकर अपनी बुक्स रख देते हैं। और इसके एवज में वे स्कूल प्रबंधक को कमीशन का लालच दे देते हैं। पब्लिशर्स का कहना होता है कि अगर स्कूल सिर्फ हमारी बुक्स की लिस्ट बोर्ड पर लगाएगा तो हम स्कूल को कमीशन देंगे। इससे स्कूल का भी फायदा होता है और इस सांठ-गांठ में पालकों को भारी नुकसान झेलना पड़ता है। 

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