द पब्लिकेट। नवरात्रि के नवें दिन माता सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। देवी सिद्धिदात्री, देवी दुर्गा का नौवां स्वरूप मानी जाती हैं। उनका नाम ‘सिद्धिदात्री’ इसलिए पड़ा क्योंकि वे अपने भक्तों को सभी प्रकार की सिद्धियाँ प्रदान करती हैं। वे अत्यंत करुणामयी और सौम्य हैं, जिनके आशीर्वाद से भक्तों की सभी इच्छाएँ पूरी होती हैं। देवी सिद्धिदात्री का स्वरूप अत्यंत सुंदर और दिव्य है। वे कमल के फूल पर विराजमान होती हैं और उनके चार हाथ होते हैं, जिनमें चक्र, शंख, गदा, और पुष्प धारण किए रहते हैं।
● माता सिद्धिदात्री से जुड़ी कथा:
पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान शिव ने माता सिद्धिदात्री की कठोर तपस्या की थी और उनके आशीर्वाद से ही शिव को सभी सिद्धियाँ प्राप्त हुईं। इसी कारण वे अर्द्धनारीश्वर कहलाए, क्योंकि माता ने उन्हें अपने शरीर का आधा भाग प्रदान किया। देवी सिद्धिदात्री सभी प्रकार की सिद्धियों की दाता हैं और वे सभी प्रकार की बाधाओं को दूर कर भक्तों को जीवन में सफलता प्रदान करती हैं।
● पूजन विधि:
नवें दिन माता सिद्धिदात्री की पूजा विधि-विधान से की जाती है। सुबह स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण कर माता की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। धूप-दीप, पुष्प, चंदन और अक्षत से उनकी पूजा करें। माता को गुलाब या कमल के पुष्प अर्पित करें और सफेद वस्त्र का चढ़ावा चढ़ाएं। माता को सफेद तिल और नारियल का भोग विशेष रूप से प्रिय है। इस दिन भक्तों को माता का ध्यान कर ‘सिद्धगंधर्वयक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि। सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी॥’ मंत्र का जाप करना चाहिए।
● प्रिय रंग और भोग:
माता सिद्धिदात्री को बैंगनी रंग अत्यंत प्रिय है। उनका प्रिय भोग नारियल,खीर,सफेद तिल से बने पकवान होते हैं, जिन्हें प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाता है।
● माता से मिलने वाली शिक्षा:
माता सिद्धिदात्री भक्तों को यह सिखाती हैं कि जीवन में विश्वास और भक्ति से ही असंभव को भी संभव बनाया जा सकता है। उनकी पूजा से हम यह सीखते हैं कि यदि हम अपने उद्देश्य के प्रति समर्पित रहते हैं, तो हमें जीवन में सभी प्रकार की सिद्धियाँ प्राप्त हो सकती हैं। उनका आशीर्वाद हमें जीवन में सफलता और सुख-शांति प्रदान करता है।