माँ ने यह रूप असुरों को हराने और दुनिया के नकारात्मक प्रभाव को खत्म करने के लिए लिया था
- माँ चंद्रघंटा की कथा:
माँ चंद्रघंटा देवी दुर्गा का तीसरा रूप हैं। इनका नाम “चंद्रघंटा” इसलिए पड़ा क्योंकि इनके मस्तक पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र स्थित होता है। माँ चंद्रघंटा का स्वरूप अत्यंत शांत और सौम्य होता है, लेकिन जब दानवों और असुरों का नाश करने की आवश्यकता होती है, तो ये रौद्र रूप धारण कर लेती हैं। माँ चंद्रघंटा दस भुजाओं वाली हैं, जिनमें वे विभिन्न अस्त्र-शस्त्र धारण करती हैं। ये सिंह पर सवार रहती हैं और इनके घंटे की ध्वनि से दुष्टों का नाश होता है।
कथा के अनुसार, माँ चंद्रघंटा ने अपने इस रूप में महिषासुर जैसे असुरों का वध किया और समस्त देवताओं को दानवों से मुक्ति दिलाई। इन्हें समर्पण और साहस की देवी माना जाता है, जो अपने भक्तों को भयमुक्त और शांत जीवन प्रदान करती हैं। माँ चंद्रघंटा की आराधना से भक्तों को विशेष रूप से मानसिक शांति और उन्नति की प्राप्ति होती है।
- पूजन विधि:
1. सबसे पहले माँ चंद्रघंटा की प्रतिमा या चित्र के सामने दीप प्रज्वलित करें।
2. शुद्ध जल, गंगाजल से माँ का अभिषेक करें।
3. माँ को लाल या सुनहरे वस्त्र अर्पित करें।
4. मां को गुलाब या लाल फूल चढ़ाएं।
5. नारियल, सिंदूर, रोली, अक्षत और पुष्प अर्पित करें।
6. मां को शहद और दूध से बने प्रसाद का भोग लगाएं।
7. दुर्गा सप्तशती का पाठ करें या माँ चंद्रघंटा के मंत्रों का जाप करें: “ॐ देवी चंद्रघंटायै नमः।”
8. आरती करके अंत में प्रसाद बांटें।
- प्रिय रंग:
माँ चंद्रघंटा का प्रिय रंग सुनहरा या लाल माना जाता है। इस दिन साधक लाल वस्त्र धारण करके पूजा करें तो माँ चंद्रघंटा विशेष रूप से प्रसन्न होती हैं और आशीर्वाद प्रदान करती हैं।