कोर्ट ने दिया आदेश, सरकारी कर्मचारियों को RSS की गतिविधियों में शामिल होने की मिली स्वतंत्रता
द पब्लिकेट, इंदौर। मध्य प्रदेश की इंदौर हाई कोर्ट की डिवीजन बेंच ने सरकारी कर्मचारियों पर RSS की गतिविधियों में शामिल होने के 58 साल पुराने प्रतिबंध को हटा दिया है। यह निर्णय उन पुराने नियमों को पलटता है जो सरकारी कर्मचारियों को RSS की शाखाओं और कार्यक्रमों में भाग लेने से रोकता था।पहले यह आदेश सरकारी कर्मचारियों को RSS की शाखाओं और कार्यक्रमों में भाग लेने से रोकता था। अब, कर्मचारियों को RSS की गतिविधियों में शामिल होने की स्वतंत्रता मिल गई है।
RSS पर प्रतिबंध की शुरुआत फरवरी 1948 में गांधीजी की हत्या के बाद हुई थी फिर सरकारी कर्मचारियों के शामिल होने पर प्रतिबंध 1966 में लगाया था, जिसे 1970 और 1980 में फिर से दोहराया गया। यह प्रतिबंध RSS को सामाजिक और सांप्रदायिक संगठन मानकर लगाया गया था। 2023 में, पुरुषोत्तम गुप्ता ने इस प्रतिबंध को चुनौती देते हुए याचिका दायर की, जिसमें उन्होंने RSS की गतिविधियों में शामिल होने की अनुमति मांगी थी। और 9 जुलाई 2024 को केंद्र सरकार ने इस 58 साल के प्रतिबंध को समाप्त कर दिया।
जज एसए धर्माधिकारी और जस्टिस गजेंद्र सिंह ने टिप्पणी की कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि केंद्र सरकार को अपनी गलती का एहसास होने में पांच दशक लग गए। कोर्ट ने स्वीकार किया कि RSS को गलत तरीके से प्रतिबंधित संगठनों की सूची में रखा गया था और अब इसे हटाने का आदेश दिया है।
कोर्ट ने सेंट्रल होम मिनिस्ट्री के हालिया सर्कुलर में संशोधन करने के बावजूद, नए आदेश के तहत कहा है कि सरकार को इस सर्कुलर में फिर से संशोधन नहीं करना चाहिए। इसके अलावा, कोर्ट ने आदेश दिया है कि इस संशोधन को ऑफिशियल वेबसाइट और जनसंपर्क विभाग के द्वारा जानकारी फैलायी जाए, ताकि जनता को इस बदलाव की जानकारी मिल सके।
कोर्ट ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 14 और 19 के तहत सभी को मौलिक अधिकार प्राप्त हैं और RSS की गतिविधियों में शामिल होना राष्ट्रविरोधी या सांप्रदायिक नहीं हो सकता। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि RSS एक स्वैच्छिक संगठन है जो धार्मिक और सामाजिक कामों में लगा हुआ है, और इसका राजनीति से कोई सीधा संबंध नहीं है।
कोर्ट ने कहा कि संघ की गतिविधियों में शामिल होने पर सरकारी कर्मचारियों पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाती थी, लेकिन कई राज्यों में ऐसा कोई प्रतिबंध नहीं था। मध्य प्रदेश ने 2006 में यह प्रतिबंध हटा दिया था, और अब केंद्र सरकार ने भी इसे समाप्त कर दिया है।